क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व कीओर घूमती हुई अपनी धुरी पर दैनिक परिक्रमा करती है
इसलिए पृथ्वी के घूर्णन से तालमेल बनाए रखने के लिए रॉकेट पश्चिम से पूर्व की ओर छोड़े जाते हैं .
ऐसे रॉकेट उन उपग्रहों या अंतरिक्ष स्टेशन के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं जो या तो पृथ्वी की परिक्रमा लगभग भूमध्य रेखीय आधार पर करते हैं या जो पृथ्वी सापेक्ष स्थिर (अर्थात भूस्थिर जियो-स्टशनरी( रहते हैं।ऐसे उपग्रह संचार सम्वाद वाले या अन्वेषण के उपग्रहादि होते हैं।
पर जो उपग्रह पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव या दक्षिणी से उत्तरी ध्रुव के बीच परिक्रमा करते हैं ऐसे उपग्रहों को उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव की दिशा में प्रक्षेपित रॉकेट में भेजा जाता है।
ऐसे उपरोक्त उपग्रह किसी विशेष अन्वेषण के लिए प्रक्षेपित होते हैं।ऐसे उवग्रहों को ले जाने वाले रॉकेटों के प्रेक्षपण को पृथ्वी के घूर्णन वेग से कोई मदद नहीं मिलती है।
पृथ्वी की घूर्णन दिशा अनुसार अर्थात पश्चिम से पूर्व की ओर प्रक्षेपित होने वाले रॉकेटों में ऊर्जा भी कम लगती है और विरुद्ध दिशा के कारण होने वाला धर्षण friction भी अल्पतम होता है।
रॉकेट के छोड़े जाने के बाद पृथ्वी के सापेक्ष अन्तरिक्ष में उस रॉकेट के azimuth अर्थात दिगंश या दिशा कोण- और altitude अर्थात उन्नतांश लगातार मॉनिटर किए जाते हैं ..
आपने देखा होगा कि आकाश के ग्रह नक्षत्र जो दूर होने से लगभग स्थिर से लगते हैं (यद्यपि वे भी गतिमान हैं ),पृथ्वी के पश्चिम से पूरब दिशा की ओर घूमने के कारण ही विपरीत क्रम से पूर्व में उदित होकर पश्चिम दिशा में अस्त होते दीखते हैं.