गुरु द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों की शिक्षा पूरी होने पर हस्तिनापुर में एक रंगभूमि का आयोजन करवाया। रंगभूमि में अर्जुन विशेष धनुर्विद्या युक्त शिष्य प्रमाणित हुआ। तभी कर्ण रंगभूमी में आया और अर्जुन द्वारा किए गए करतबों को पार करके उसे द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकारा। कब कृपाचार्य ने कर्ण के द्वन्द्वयुद्ध को अस्वीकृत कर दिया और उससे उसके वंश और साम्राज्य के विषय में पूछा - क्योंकि द्वन्द्वयुद्ध के नियमों के अनुसार केवल एक राजकुमार ही अर्जुन को, जो हस्तिनापुर का राजकुमार था, द्वन्द्वयुद्ध के लिए ललकार सकता था। तब कौरवों में सबसे ज्येष्ठ दुर्योधन ने कर्ण को अंगदेश का राजा घोषित किया जिससे वह अर्जुन से द्वन्द्वयुद्ध के योग्य हो जाए। जब कर्ण ने दुर्योधन से पूछा कि वह उससे इसके बदले में क्या चाहता है, तब दुर्योधन ने कहा कि वह केवल ये चाहता है कि कर्ण उसका मित्र बन जाए।
इस घटना के बाद महाभारत के कुछ मुख्य सम्बन्ध स्थापित हुए, जैसे दुर्योधन और कर्ण के बीच सुदृढ़ सम्बन्ध बनें, कर्ण और अर्जुन के बीच तीव्र प्रतिद्वन्द्विता और पाण्डवों तथा कर्ण के बीच वैमनस्य।
कर्ण, दुर्योधन का एक निष्ठावान और सच्चा मित्र था।