सत्यमेव जयते - मुण्डकोपनिषद के तृतीय मुंडक के श्लोक 6 से लिया गया है।
यह निम्नवत है
सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥
सत्य का ही जय (जीत) होता है, असत्य का नहीं ,सत्य से भरा पथ देव मार्ग होता है। जिस पर जाने से आप्तकाम मनुष्य बनता है, जहां वह परम् सत्य प्राप्त करता है।