कंपनी लीड मैनेजर्स (मर्चेंट बैंकर या सिंडिकेट मेंबर्स) की मदद से आईपीओ का प्राइस या प्राइस बैंड तय करती है।
सेबी, भारत में नियामक प्राधिकरण या स्टॉक एक्सचेंज सार्वजनिक निर्गम की कीमत तय करने में कोई भूमिका नहीं निभाते हैं। सेबी सिर्फ आईपीओ प्रॉस्पेक्टस की सामग्री को मान्य करता है।
आईपीओ के लिए उचित कीमत तय करने से पहले कंपनियां और लीड मैनेजर बहुत सारे मार्केट रिसर्च और रोड शो करते हैं।
यदि कंपनियां उच्च प्रीमियम मांगती हैं तो आईपीओ के विफल होने का उच्च जोखिम होता है। कई बार निवेशक कंपनी या इश्यू प्राइस को पसंद नहीं करते हैं और इसके लिए आवेदन नहीं करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनसब्सक्राइब या अंडरसब्सक्राइब इश्यू होता है। इस मामले में कंपनियां या तो इश्यू प्राइस में संशोधन करती हैं या आईपीओ को निलंबित कर देती हैं।